NATH SAMPRDAY नाथ संप्रदाय का इतिहास राजस्थान में शैव व वैष्णव दोनों परंपराओं में विकसित हुआ। मत्स्येन्द्रनाथ और गोरखनाथ इसके प्रमुख प्रवर्तक रहे। जालौर का सिरे मंदिर, जोधपुर का महामंदिर और पुष्कर की राताडूंगा इसकी मुख्य पीठें हैं। यहां नाथ, मसानिया, ओघड़, कालबेलिया और अघोरी जैसी शाखाएं पाई जाती हैं।
Page Contents
Toggle1. नाथ संप्रदाय की उत्पत्ति
प्रवर्तक – नाथ मुनि
काल – पूर्व मध्यकाल
आधार – शैव धर्म, योग साधना, अलख निरंजन की उपासना
2. राजस्थान में नाथ पंथ का विकास
(A) शैव परंपरा
मत्स्येन्द्रनाथ प्रमुख प्रचारक
जालंधरनाथ का मंदिर जालौर किले में
गोगादेव को जालंधरनाथ का वरदान
(B) वैष्णव परंपरा
जालौर के सिरे मंदिर की गद्दी
पुष्कर की राताडूंगा पीठ (बैराग पंथ)
जोधपुर का महामंदिर (माननाथी पंथ)
3. प्रमुख प्रचारक और गद्दियां
भर्तृहरि – बैराग पंथ के प्रचारक
माननाथी पंथ – जोधपुर के राजा मानसिंह द्वारा स्थापित
जोगी रतननाथ – जैसलमेर के भाटी राजा देवराज को रावल की उपाधि दी
योगी बालनाथ – रामदेवजी तंवर और हरभू साँखला शिष्य
4. राजवंश और नाथ संत
राव सलखा के पुत्र रावल मल्लीनाथ – योगी रतननाथ के आशीर्वाद से जन्म
पोकरण के ठाकुर राठौड़ खीवा की ठकुरानी ईदी – बालनाथ की भक्त
5. नाथ पंथ की शाखाएं
1. नाथ या कनफटे
2. मसानिया
3. कालबेलिया
4. ओघड़
5. अघोरी
6. रावल
6. गोरखनाथ और चीरा परंपरा
गोरखनाथ ने कान फाड़ने की (कर्ण छेदन) प्रथा प्रारंभ की
जिनके कान नहीं फटे उन्हें ओघड़ कहते हैं
7. कानपा पंथ और कालबेलिये
प्रवर्तक – जलंधरनाथ के शिष्य कानपा नाथ
नाथ संप्रदाय के साढ़े बारह पंथों में से एक
कालबेलिये इन्हें अपना गुरु मानते हैं
साधना – प्राणायाम, ओमकार मंत्र सिद्धि, अलख निरंजन
8. राजस्थान में नाथ संप्रदाय की लोकप्रियता
राजाओं और जनता दोनों में सम्मान
जैसलमेर, जोधपुर, पोकरण, जालौर, पुष्कर प्रमुख केंद्र
योग साधना और लोकआस्था का अद्भुत संगम
9. सारांश
नाथ संप्रदाय का उदय भारतीय धार्मिक व सांस्कृतिक परंपरा में एक महत्वपूर्ण घटना थी। पूर्व मध्यकाल में शैव धर्म के भीतर से निकला यह पंथ धीरे-धीरे राजस्थान सहित पूरे उत्तर भारत में लोकप्रिय हो गया। मत्स्येन्द्रनाथ और गोरखनाथ इसके प्रमुख प्रचारक थे, जिन्होंने साधना, योग और अलख निरंजन की उपासना को जन-जन तक पहुँचाया। वैष्णव परंपरा में भी इस पंथ ने अपनी गहरी छाप छोड़ी। जालौर का सिरे मंदिर, जोधपुर का महामंदिर, और पुष्कर की राताडूंगा जैसी गद्दियां आज भी इसकी महत्ता का प्रमाण देती हैं।
राजाओं से लेकर आम जनता तक नाथ संतों को सम्मानित किया जाता था। जैसलमेर के रावल देवराज, रावल मल्लीनाथ और गोगादेव जैसे पात्रों के जीवन में नाथ संतों का विशेष योगदान मिलता है। गोरखनाथ द्वारा प्रारंभ की गई कान फाड़ने की परंपरा (कर्ण छेदन) ने साधुओं को “कनफटा” नाम दिया। कानपा पंथ और कालबेलियों की साधना प्रणाली ने इसे और विविध रूप दिया। नाथ पंथ केवल एक धार्मिक धारा नहीं, बल्कि राजस्थान की संस्कृति, इतिहास और समाज को जोड़ने वाली शक्ति भी रहा।
Quick Revision Facts Table
विषय |
तथ्य |
प्रवर्तक | नाथ मुनि |
प्रमुख प्रचारक | मत्स्येन्द्रनाथ, गोरखनाथ |
प्रमुख गद्दियां | जालौर – सिरे मंदिर, जोधपुर – महामंदिर, पुष्कर – राताडूंगा |
शाखाएं | नाथ/कनफटे, मसानिया, कालबेलिया, ओघड़, अघोरी, रावल |
परंपरा | कान फाड़ना (कर्ण छेदन) |
विशेष पंथ | कानपा पंथ (जलंधरनाथ के शिष्य) |
लोकप्रियता | राजवंशीय संरक्षण, लोक आस्था, योग साधन |
11. FAQ – Frequently Asked Questions
Q1. नाथ संप्रदाय के प्रवर्तक कौन माने जाते हैं?
नाथ मुनि को नाथ संप्रदाय का प्रवर्तक माना जाता है।
Q2. राजस्थान में नाथ पंथ की प्रमुख गद्दियां कहाँ स्थित हैं?
जालौर का सिरे मंदिर, पुष्कर की राताडूंगा पीठ और जोधपुर का महामंदिर।
Q3. गोरखनाथ ने कौन-सी परंपरा प्रारंभ की थी?
गोरखनाथ ने कान फाड़ने (कर्ण छेदन) की परंपरा शुरू की।
Q4. बैराग पंथ के प्रथम प्रचारक कौन थे?
भर्तृहरि बैराग पंथ के प्रथम प्रचारक माने जाते हैं।
Q5. कानपा पंथ का प्रवर्तन किसने किया?
जलंधरनाथ के शिष्य कानपा नाथ ने।
Q6. नाथ साधु जिन्हें कान नहीं फाड़े जाते, उन्हें क्या कहते हैं?
ऐसे साधुओं को ओघड़ कहा जाता है।
Q7. गोगादेव को किस संत का आशीर्वाद मिला था?
जालंधरनाथ का।
Q8. रावल मल्लीनाथ का जन्म किस संत के आशीर्वाद से हुआ था?
योगी रतननाथ के आशीर्वाद से।
Q9. कालबेलिया समाज किस संत को गुरु मानता है?
कानपा नाथ को।
Q10. नाथ संप्रदाय का मुख्य मंत्र क्या है?
“अलख निरंजन”।