Jambhoji |जाम्भोजी बिश्नोई सम्प्रदाय प्रकृति संरक्षण, जीवदया और 29 नियमों पर आधारित है। संत जांभेश्वर भगवान के उपदेश आज भी पर्यावरण और समाज को दिशा देते हैं।
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Toggleजन्म और जीवन
जन्म: 1451 ई., भाद्रपद कृष्ण अष्टमी, पीपासर (नागौर)
मूल नाम: धनराज
पिता: लोहटजी पंवार
माता: हंसादेवी
गुरु: गोरखनाथ जी
उपनाम: भगवान विष्णु अवतार, पर्यावरण वैज्ञानिक
शरीर त्याग: लालासर (बीकानेर)
स्थापना
स्थान: समराथल, बीकानेर
वर्ष: 1485 ई., कार्तिक कृष्ण अष्टमी
उपदेश: 29 नियम (20+9)
अनुयायी: “बिश्नोई”
प्रमुख ग्रंथ
जम्ब सागर
सबदवाणी
वेदवाणी
जम्भवाणी
गुरुवाणी
जम्भसंहिता
विश्नोई धर्मप्रकाश
प्रमुख अनुयायी
प्रथम अनुयायी: पुल्होजी पंवार
प्रथम अध्यक्ष: विल्होजी
प्रवचन स्थल: साथरी
प्रमुख पीठ: मुकाम, नोखा, बीकानेर
प्रमुख मेले
फाल्गुन अमावस्या (समराथल धोरा)
आश्विन अमावस्या (समराथल धोरा)
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बिश्नोई नियम
नियम विवरण
1 पेड़-पौधों की रक्षा
2 जीव-जंतुओं की रक्षा
3 मृत्यु के बाद मिट्टी में समाधि
4 नीले वस्त्र त्याग
5 अमावस्या को व्रत
6 जनसुतक 30 दिन
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प्रमुख धार्मिक स्थल
स्थल – महत्व
पीपासर (नागौर) – जन्मस्थली (खडाऊ की पीपा)
रोटू (नागौर) – धार्मिक स्थल
मुकाम (बीकानेर) – समाधि स्थल (टोपी / पिछवाड़ो)
जांगलू (बीकानेर) – भिक्षापात्र/चोला
लोहावट (जोधपुर) – पैर के निशान
रामडावास (जोधपुर) – उपदेश स्थल
जांभा (फलोदी) – विश्नोई का पुष्कर मेला
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मंत्र
“विष्णु विष्णु तू भा र प्राणी जागोजी”
चीले कपड़ों का त्याग
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कृत्य
1. विधवा विवाह के लिए प्रयास करने वाले प्रथम संत
2. पेड़-पौधों और वन्य जीव की रक्षा
3. दिल्ली सुल्तान सिकंदर से अकाल में हरा चारा मंगवाना
सारांश
जाम्भोजी बिश्नोई सम्प्रदाय 15वीं शताब्दी में संत जांभेश्वर भगवान (धनराज) द्वारा स्थापित एक अनूठी परंपरा है, जो मुख्यतः प्रकृति प्रेम (Nature Love), जीवदया (Compassion for Living Beings) और पर्यावरण संरक्षण (Environment Protection) के सिद्धांतों पर आधारित है। इस सम्प्रदाय की विशेषता इसके 29 नियम हैं, जिन्हें “बिश्नोई नियम” कहा जाता है। ये नियम हरियाली, वन्य जीव संरक्षण, स्वच्छता, सादगी और आध्यात्मिक जीवन पर जोर देते हैं।
संत जाम्भोजी का जन्म 1451 ई. में नागौर जिले के पीपासर गाँव में हुआ था। उनका मूल नाम धनराज था। उन्होंने कार्तिक कृष्ण अष्टमी 1485 ई. में बीकानेर के समराथल स्थान पर बिश्नोई सम्प्रदाय की स्थापना की और अपने अनुयायियों को 29 उपदेश दिए। यह सम्प्रदाय आज भी राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में लाखों अनुयायियों के बीच जीवित है।
जाम्भोजी ने समाज में विधवा विवाह का समर्थन किया, नीले वस्त्रों के त्याग की शिक्षा दी, और मृत्यु के बाद दाह संस्कार की बजाय मिट्टी में समाधि देने की परंपरा अपनाई। उन्होंने प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित रखने और पशु-पक्षियों की रक्षा का संदेश दिया। यही कारण है कि बिश्नोई समाज को भारत का पहला “पर्यावरण वैज्ञानिक समाज” कहा जाता है।
आज भी मुकाम (बीकानेर), पीपासर, जांभा और अन्य धार्मिक स्थलों पर लाखों श्रद्धालु जांभोजी के उपदेशों को स्मरण करते हैं। फाल्गुन और आश्विन अमावस्या को लगने वाले मेले समाजिक और धार्मिक एकता के प्रतीक हैं। जाम्भोजी की शिक्षाएँ आज भी जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और पर्यावरणीय संकट से जूझ रही मानवता के लिए मार्गदर्शन का स्रोत बनी हुई हैं।
FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
Q1. जाम्भोजी कौन थे?
Ans. जाम्भोजी 15वीं शताब्दी के संत और बिश्नोई सम्प्रदाय के संस्थापक थे।
Q2. बिश्नोई सम्प्रदाय कितने नियमों पर आधारित है?
Ans. बिश्नोई सम्प्रदाय 29 नियमों पर आधारित है।
Q3. जाम्भोजी का जन्म कहाँ हुआ था?
Ans. नागौर जिले के पीपासर गाँव में।
Q4. जाम्भोजी के गुरु कौन थे?
Ans. गोरखनाथ जी।
Q5. बिश्नोई सम्प्रदाय का प्रमुख स्थल कौन-सा है?
Ans. मुकाम (बीकानेर)।
Q6. जाम्भोजी ने नीले वस्त्र क्यों त्यागने को कहा?
Ans. नीले वस्त्र बनाने में जीवों की हत्या होती थी।
Q7. जाम्भोजी का समाधि स्थल कहाँ है?
Ans. मुकाम, बीकानेर।
Q8. बिश्नोई समाज का मुख्य उद्देश्य क्या है?
Ans. पर्यावरण संरक्षण और जीवदया।
Q9. जाम्भोजी द्वारा रचित ग्रंथ कौन-कौन से हैं?
Ans. जम्ब सागर, जम्भवाणी, वेदवाणी आदि।
Q10. बिश्नोई सम्प्रदाय किन राज्यों में प्रमुख है?
Ans. राजस्थान, हरियाणा और पंजाब।