Laldasi |लालदासी संप्रदाय और संत लालदासजी | (Alwar): इतिहास, उपदेश और विशेषताएँ

Laldasi लालदासी संप्रदाय और संत लालदासजी (Alwar) का इतिहास, जीवन परिचय, उपदेश, दीक्षा विधि और वर्तमान स्थिति जानें। निर्गुण भक्ति, राम नाम जप और पंथ की विशेषताओं पर संपूर्ण जानकारी।

1. परिचय

  • निर्गुण भक्ति संप्रदाय
  • मेव समाज में प्रचलित
  • अलवर और भरतपुर क्षेत्र केंद्र

2. संत लालदासजी का जन्म और जीवन

जन्म स्थान और परिवार

  • जन्म: वि.सं. 1597 (1540 ई.)
  • स्थान: धोलीदूब (मेवात प्रदेश)
  • पिता: चांदमल
  • माता: समदा
  • जाति: दूलोत-गोत्र, मेव (मुसलमान)

बचपन और भक्ति प्रवृत्ति

  • बचपन से एकांतप्रिय
  • लकड़ी काटकर अलवर बेचना
  • जंगल में साधना, भक्ति शक्ति वृद्धि

3. गुरु और दीक्षा

  • गुरु: गद्दन चिश्ती (तिजारा के मुस्लिम संत)
  • दीक्षा ली और निर्गुण भक्ति का मार्ग अपनाया

4. लालदासी संप्रदाय का प्रारंभ

  • गद्दन चिश्ती की प्रेरणा से धोलीदूब छोड़कर बांधोली में निवास
  • सिंह-शिला पर्वत पर कुटी का निर्माण
  • निर्गुण भक्ति और राम नाम का प्रचार

5. संत लालदास का परिवार

  • पत्नी: भोगरी
  • पुत्री: स्वरूपा
  • पुत्र: पहाड़ा और कुतब (मियां साहब)
  • मठ: बांधोली

6. अंतिम समय और समाधि

  • अंतिम जीवन: नगला ग्राम
  • आयु: 108 वर्ष
  • निधन: संवत 1705 (1648 ई.)
  • समाधि स्थल: शेरपुर (मकबरा और कब्र मौजूद)

7. लालदास की चेतावणियाँ (Teachings)

  • उपदेश “लालदास की चेतावणियां” ग्रंथ में संग्रहित
  • मुख्य सिद्धांत: राम नाम जप, निर्गुण भक्ति, गृहस्थ जीवन में साधना

8. लालदासी संप्रदाय की विशेषताएँ

दीक्षा विधि

  • मुँह काला करना
  • जूतों का हार पहनाना
  • गधे पर उल्टा बैठाकर गाँव में घुमाना
  • शरबत का प्याला पिलाना
  • पंथ में प्रवेश

सामाजिक जीवन

  • अकर्मण्यता का निषेध
  • स्वयं कमा कर खाना आवश्यक

अभिवादन परंपरा

  • अनुयायी “जयराम” कहकर मिलते हैं

9. वर्तमान स्थिति

  • अलवर और भरतपुर में प्रमुख अनुयायी
  • बाधोली पहाड़ पर “लालदास की बैठक”
  • आज भी महंत परंपरा जीवित

10. सारांश 

लालदासी संप्रदाय और संत लालदासजी (Alwar) का उद्भव 16वीं शताब्दी में हुआ, जब संत लालदास ने गद्दन चिश्ती से दीक्षा लेकर निर्गुण भक्ति मार्ग का प्रचार आरंभ किया। संत लालदास का जीवन अत्यंत सादगीपूर्ण और भक्ति से परिपूर्ण था। उन्होंने गृहस्थ जीवन जीते हुए भी भक्ति और साधना को महत्व दिया। उनका संदेश यह था कि सच्चा साधक वही है जो स्वयं कमा कर खाए और राम नाम का निरंतर जाप करे। उनकी शिक्षाएँ “लालदास की चेतावणियाँ” नामक ग्रंथ में सुरक्षित हैं। संप्रदाय की दीक्षा विधि विशेष और प्रतीकात्मक थी, जिससे अनुयायी सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर नए जीवन में प्रवेश करता था। यह पंथ आज भी अलवर और भरतपुर जिलों में जीवित है। “जयराम” अभिवादन, राम नाम जप, और सामूहिक कीर्तन इसकी पहचान हैं। लालदासी मेव अपने रहन-सहन, आचार-विचार से हिंदू परंपरा के अधिक निकट दिखाई देते हैं। इस प्रकार, लालदासी संप्रदाय संत भक्ति, सामाजिक अनुशासन और सांस्कृतिक समन्वय का जीवंत उदाहरण है।

Quick Revision Facts

विषय (Topic)  तथ्य (Facts)
संत का नाम  संत लालदासजी
जन्म वर्ष  वि.सं. 1597 (1540 ई.)
जन्म तिथि श्रावण कृष्ण पंचमी, रविवार
जन्म स्थान  धोलीदूब गाँव, मेवात प्रदेश
पिता का नाम  चांदमल
माता का नाम समदा
गोत्र/जाति  दूलोत-गोत्र के मेव
प्रमुख स्थान अलवर क्षेत्र
प्रमुख उपदेश  भक्ति, वैराग्य, साधुता
मुख्य अनुयायी वर्ग   मेव समाज और स्थानीय ग्रामीण
संप्रदाय की विशेषता संत परंपरा, सरल भक्ति मार्ग, समाज सुधार
प्रभाव क्षेत्र  मेवात, राजस्थान
योगदान  धार्मिक एकता, लोकभाषा में उपदेश, भक्ति-संप्रदाय का विस्तार

FAQs

Q1. संत लालदासजी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
संत लालदासजी का जन्म वि.सं. 1597 (1540 ई.) में धोलीदूब, मेवात प्रदेश में हुआ था।

Q2. संत लालदासजी के गुरु कौन थे?
इन्होंने तिजारा के मुस्लिम संत गद्दन चिश्ती से दीक्षा ली थी।

Q3. लालदासी संप्रदाय की मुख्य विशेषता क्या है?
इस पंथ में अकर्मण्यता का स्थान नहीं है, अनुयायी को स्वयं कमा कर खाना आवश्यक है।

Q4. संत लालदास का निधन कब हुआ?
इनका निधन संवत 1705 (1648 ई.) में 108 वर्ष की आयु में हुआ।

Q5. लालदासी पंथ के अनुयायी किस अभिवादन का प्रयोग करते हैं?
वे आपस में “जयराम” कहकर अभिवादन करते हैं।

Q6. लालदास की शिक्षाओं को किस ग्रंथ में संग्रहित किया गया है?
“लालदास की चेतावणियाँ” ग्रंथ में।

Q7. दीक्षा की प्रक्रिया में क्या विशेष है?
दीक्षार्थी को गधे पर उल्टा बैठाकर गाँव में घुमाया जाता है, फिर शरबत पिलाकर पंथ में शामिल किया जाता है।

Q8. वर्तमान में लालदासी पंथ कहाँ सक्रिय है?
मुख्य रूप से अलवर और भरतपुर जिलों में।

Q9. लालदासी पंथ के ब्रह्म को क्या कहा जाता है?
वे अपने ब्रह्म को “राम” कहते हैं।

Q10. लालदासी पंथ का मठ कहाँ स्थित है?
बांधोली में संत लालदासजी का मठ स्थित है।

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