यह रामस्नेही संप्रदाय भगवान राम की निर्गुण उपासना करते है। 18 वीं शताब्दी में राजस्थान में इस संप्रदाय के प्रमुख चार स्थान रेण, शाहपुरा, सिंहथल व खेड़ापा में क्रमशः दरियावजी, रामचरणजी, हरीरामजी तथा रामदासजी द्वारा स्थापित किए गए। यह चारों शाखा मूलतः रामानंद की शिष्य परम्परा से उत्पन्न हुई है, जिसमें रेण तथा शाहपुरा शाखा दांताडा के प्रसिद्ध विचारक संतदास से तथा सिहथल व खेड़ापा की शाखाएं दुलचासर के संत जैमलदास से संबंधित है।
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Toggleशाहपुरा शाखा – भीलवाड़ा
यह रामस्नेही संप्रदाय की प्रमुख शाखा / पीठ है
प्रार्थना स्थल – रामद्वारा
प्रवर्तक – रामचरण जी (जिनके बचपन का नाम रामकिशन था)
जन्म – 1719 ई. माघ शुक्ल चतुर्दशी शनिवार को सोडा गांव (डिग्गी – टोंक) में हुआ।
पिता – बख्तराम
माता – देऊजी
गुरू – कृपारामजी
इनकी वाणियो को अनभे वाणी कहते है।
शाहपुरा में फूलडोल महोत्सव (चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से पंचमी) मनाया जाता है ।
रैण शाखा – नागौर
संस्थापक – दरियाव जी
जन्म – 1676ई भाद्रपद कृष्ण अष्टमी बुधवार को जैतारण( ब्यावर ) में हुआ।
पिता – मानसा
माता – गीगा
देहान्त – 1758 ई. मार्गशीर्ष शुक्ल 15 को रैण मे ही हुआ।
समाधि – लाखसागर की पाल पर ( दरियाव जी का देवल धाम )
इन्होंने रा से राम तथा म से मोहम्मद बताकर सांप्रदायिक सद्भावना का संदेश दिया।
सिंहथल शाखा – बीकानेर
प्रवर्तक – हरिराम दास जी
जन्म – बीकानेर के सिंहथल नामक गांव के एक ब्राह्मण भागचंद जोशी के घर हुआ।
माता – रामी
पत्नी – चांपा
पुत्र – बिहारीदास
इनका कहना था – मेरे मन में द्वारिकापुरी है और द्वारिकापुरी में मक्का है।
खेड़ापा शाखा – जोधपुर
प्रवर्तक – संत रामदास जी
जन्म – 1726 ई. फाल्गुन शुक्ल 13 जोधपुर जिले के बीकामकोर
जाति – मेघवाल
पिता – शादुलजी
माता – अनभी
साधना – मिलना (जोधपुर) में की।
देहान्त – 1798 ई आषाढ़ कृष्णा 7 मंगलवार को खेड़ापा में
राम महौला का निर्माण करवाया ।
रामस्नेही सप्रदाय की शाखाएं | प्रवर्तक |
शाहपुरा | रामचरणजी |
रैण | दरियावजी |
सिंहथल | हरिरामदासजी |
खेड़ापा | रामदासजी |
सार
“रामस्नेही संप्रदाय भक्ति की वह धारा है जो मूर्ति पूजा से ऊपर उठकर केवल ‘राम नाम’ की साधना को जीवन का आधार मानती है। स्वामी रामचरण महाराज ने 18वीं सदी में इस संप्रदाय की नींव रखी और प्रेम, सत्य और सादगी पर आधारित जीवन का संदेश दिया। शाहपुरा का रामद्वारा आज भी भक्तों के लिए आस्था और शांति का केंद्र है। यह संप्रदाय हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति बाहरी दिखावे में नहीं, बल्कि मन की पवित्रता और ईश्वर के नाम में बसती है।”