SAINT DADUDAYAL संत दादूदयाल और दादू पंथ राजस्थान में निर्गुण भक्ति आंदोलन के प्रवर्तक रहे। इन्हें “राजस्थान का कबीर” कहा जाता है। जानें दादूजी का जीवन, शिक्षाएँ, 52 शिष्य, 6 शाखाएँ, अलख दरीबा सत्संग और पंथ की विशेषताएँ।
Page Contents
Toggle1. परिचय
संत दादूदयाल: निर्गुण भक्ति परंपरा के प्रवर्तक
“राजस्थान का कबीर” उपाधि
लोक भाषा में उपदेश
2. संत दादूदयाल का जीवन
जन्म और मृत्यु
जन्म: गुजरात (सटीक तिथि अनिश्चित)
मृत्यु: ज्येष्ठ कृष्णा अष्टमी, 1603 ई.
स्थान: नरैना (जयपुर)
नरैना और भैराणा से संबंध
1602 ई.: नरैना में आगमन
मृत्यु उपरांत: पार्थिव शरीर भैराणा पहाड़ी की खोह में रख गया
दादू पंथियों के लिए पवित्र स्थान
3. दादू पंथ की विशेषताएँ
अलख दरीबा
दादू पंथ के सत्संग का नाम
“अलख” = निर्गुण ईश्वर
निर्गुण भक्ति
निराकार ईश्वर में आस्था
मूर्ति पूजा से परे उपासना
लोकभाषा में उपदेश
सरल, सहज भाषा
जनसाधारण तक भक्ति संदेश
4. शिष्य और परंपरा
152 शिष्य
100 गृहस्थ
52 साधु → “52 स्तंभ”
प्रमुख शिष्य
पुत्र: गरीबदासजी
मिस्किनदास
सुन्दर दासजी
श्रीलाखाजी
नरहरिजी
बखनाजी
रज्जबजी
संतदासजी
जगन्नाथजी
माधोदासजी
5. दादू पंथ के 52 स्तंभ
52 प्रमुख साधु–गृहस्थ शिष्य
पंथ संगठन का आधार
अनुशासन और परंपरा की स्थिरता
6. दादू पंथ की 6 शाखाएँ
1. खालसा
मुख्य पीठ नरैना
मुखिया: गरीबदासजी
2. नागा
स्थापना: सुन्दरदासजी
हथियारधारी साधु
जयपुर राज्य में “दाखिली सैनिक”
सवाई जयसिंह ने शस्त्र पर प्रतिबंध लगाया
3. विरक्त
घूमते–फिरते साधु
गृहस्थों को उपदेश
4. खाकी
भस्म लगाते
खाकी वस्त्र धारण
5. उत्तरादे / स्थानधारी
उत्तर भारत की ओर प्रवास
संस्थापक: बनवारीदासजी (सांभर से हिसार, रतिया)
“स्थानधारी” → स्थायी केंद्र
6. निहंग
घुमंतू साधु
स्थायी केंद्र नहीं
7. सामाजिक और धार्मिक योगदान
निर्गुण भक्ति का प्रसार
मूर्तिपूजा विरोध और साधारण जीवन की प्रेरणा
रास्थान से उत्तर भारत तक पंथ का विस्तार
“अलख निरंजन” परंपरा
8. सारांश
संत दादूदयाल और दादू पंथ राजस्थान की भक्ति परंपरा में अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इन्हें “राजस्थान का कबीर” कहा गया क्योंकि कबीर की तरह इन्होंने भी निर्गुण निराकार ईश्वर की भक्ति का प्रचार लोक भाषा में किया। 1602 ई. में दादूजी नरैना आए और 1603 ई. में वहीं उनका देहावसान हुआ। उनकी इच्छा अनुसार उनका शरीर भैराणा की पहाड़ी की खोह में रखा गया, जिसे दादू पंथी आज भी पवित्र मानते हैं।
दादूजी के 152 शिष्य थे, जिनमें 100 गृहस्थ और 52 साधु थे। इन्हीं को “52 स्तंभ” कहा जाता है। प्रमुख शिष्यों में गरीबदासजी, मिस्किनदास, सुन्दरदासजी, रज्जबजी और माधोदासजी का योगदान उल्लेखनीय है। दादू पंथ की 6 शाखाएँ बनीं—खालसा, नागा, विरक्त, खाकी, उत्तरादे/स्थानधारी और निहंग। नागा शाखा हथियारधारी साधुओं के लिए प्रसिद्ध थी, जबकि स्थानधारी शाखा हरियाणा के रतिया में स्थापित हुई। दादू पंथ के सत्संग “अलख दरीबा” कहलाते हैं और इसके अनुयायी आज भी “अलख निरंजन” का उद्घोष करते हैं। इस प्रकार, दादू पंथ ने राजस्थान और उत्तर भारत में निर्गुण भक्ति का सशक्त आंदोलन खड़ा किया।
Quick Revision Facts Table
विषय (Topic) |
तथ्य (Facts) |
जन्मस्थान | अहमदाबाद (गुजरात) – बाद में नरैना (राजस्थान) |
मृत्यु | 1603 ई., नरैना (ज्येष्ठ कृष्णा अष्टमी) |
मृत्यु उपरांत शरीर | भैराणा की पहाड़ी की खोह में सुरक्षित |
सत्संग नाम | अलख दरीबा |
प्रमुख पुत्र शिष्य | गरीबदासजी |
अन्य शिष्य | मिस्किनदास, सुन्दरदास, श्रीलाखाजी, नरहरिजी, बखनाजी, रज्जबजी, संतदासजी, जगन्नाथजी, माधोदासजी |
कुल शिष्य संख्या | 152 (100 गृहस्थ, 52 साधु) |
शाखाएं | (6) 1. खालसा (मुख्यपीठ नरैना, प्रमुख-गरीबदास) 2. नागा (संस्थापक- सुन्दरदास, हथियारधारी साधु, बाद में प्रतिबंध) 3. विरक्त (रमता-फिरता उपदेशक वर्ग) 4. खाकी (भस्म व खाकी वस्त्र) 5. उत्तरादे/स्थानधारी (संस्थापक- बनवारीदास, केन्द्र- रतिया, हिसार) 6. निहंग (घुमन्तु साधु) |
साहित्यिक योगदान | निर्गुण भक्ति, लोकभाषा, साखी शैली |
पंथ का महत्व | निर्गुण-भक्ति आंदोलन का प्रसार, कबीर की परंपरा का विस्तार |
प्रमुख क्षेत्र प्रसार | राजस्थान (नरैना, जयपुर), हरियाणा, उत्तर भारत |
9. FAQs
Q1. संत दादूदयाल को “राजस्थान का कबीर” क्यों कहा जाता है?
क्योंकि उन्होंने कबीर की तरह लोकभाषा में निर्गुण भक्ति का प्रचार किया।
Q2. संत दादूजी की मृत्यु कब और कहाँ हुई?
ज्येष्ठ कृष्णा अष्टमी, 1603 ई. को नरैना (जयपुर) में हुई।
Q3. दादूजी के शरीर का क्या हुआ?
उनका शरीर भैराणा की पहाड़ी की एक खोह में रखा गया।
Q4. दादू पंथ के सत्संग को क्या कहा जाता है?
इन्हें “अलख दरीबा” कहा जाता है।
Q5. दादू पंथ के कितने शिष्य थे?
कुल 152 शिष्य थे—100 गृहस्थ और 52 साधु।
Q6. “52 स्तंभ” का क्या अर्थ है?
ये दादूजी के 52 साधु शिष्य थे, जिन्होंने पंथ की नींव मजबूत की।
Q7. दादू पंथ की कितनी शाखाएँ हैं?
छः शाखाएँ—खालसा, नागा, विरक्त, खाकी, उत्तरादे/स्थानधारी और निहंग।
Q8. नागा शाखा की विशेषता क्या थी?
नागा साधु हथियार रखते थे और जयपुर राज्य में सैनिकों की तरह कार्य करते थे।
Q9. स्थानधारी शाखा कहाँ स्थापित हुई?
हरियाणा के रतिया (जिला हिसार) में बनवारीदासजी द्वारा स्थापित।
Q10. दादू पंथ का मुख्य संदेश क्या है?
निर्गुण निराकार ईश्वर की भक्ति और लोकभाषा में सरल उपदेश।
Q11. दादूजी के प्रमुख शिष्य कौन थे?
गरीबदासजी, मिस्किनदास, सुन्दरदासजी, रज्जबजी, संतदासजी, माधोदासजी आदि।
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