
“लोक देवता देवनारायण जी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। उनकी जीवनी, चमत्कार और पूजा परंपरा आज भी लोगों की आस्था का केंद्र हैं।”
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जन्म – 1243 ई
जन्मस्थान – गौठ दडावन्त (आसींद – भीलवाडा)
पालन-पोषण – देवास (M.P.) में हुआ
जति – बगडावत वंश के नाम वंशीय गुर्जर
पिता – सवाई भोज
माता – सेऊ खट्टानी
पत्नी – पीपल दे (धार M.P. के जयसिंह की पुत्री)
बचपन का नाम – उदयसिंह
घोडा – लीलागर (नीला)
प्रतीक – कुंडली वाले सांप
उपनाम – गौ रक्षक देवता, विष्णु का अवतार, आयुर्वेद ज्ञाता, ईटो का श्याम, राज्य क्रांति का जनक
प्रमुख पुज्य स्थल – सवाई भोज का मंदिर आंसीद (खारी नही के किनारे)
मेला – भाद्रपद शुक्ल सप्तमी
अन्य आराध्य स्थल |
स्थान |
देवमाली | ब्यावर (देवनारायण जी का निधन हुआ) |
देवमाल्या | आसींद (बडी ईटो की पूजा नीम के पत्तो से, छाछ राबडी का प्रसाद) |
देवधाम | जोधपुरीया, टोक |
देवजी की डुंगरी | चितौडगढ (ये सांगा ने निर्माण करवाया) |
अन्य महत्वपूर्ण बिन्दु
देवनारायण जी की फड राजस्थान की सबसे लम्बी, सबसे पुरानी है जो गुर्जर भोपो द्वारा जंतर वाद्ययंत्र के साथ बांची जाती है।
फड पर 5 रूपये का डाक टिकट 2 सितम्बर 1992 को जारी किया गया व देवनारायणजी पर भी 2011 में 5 रुपये का डाक टिकट जारी किया गया।
देवनारायणजी, राजस्थान व गुजरात के मुख्य देवता हैं।
देवनारायण जी ने अपने पिता का बदला भिनाय के शासक को मारकर लिया।
इन्होंने गोरक्षा करते, भिनाय के शासक से लड़ते हुए देवमाली (मसूदा अजमेर) में अपनी देह त्यागी।
देवनारायण जी के संबंध में लिखे ग्रंथों में निम्न है- बात देवजी बगड़ावत री, देवजी री पड़, बगड़ावत आदि।
सार
“देवनारायण जी सिर्फ एक लोकदेवता नहीं, बल्कि लोगों की आस्था और विश्वास का आधार हैं। उनकी कथाएँ हमें धर्म, न्याय और समर्पण का संदेश देती हैं। राजस्थान और मालवा के गाँव-गाँव में आज भी उनकी पूजा बड़े उत्साह और भक्ति भाव से की जाती है। सच में, देवनारायण जी की महिमा लोकजीवन में अमर है।”