CHARANDASI PANTH चरणदासी पंथ और संत चरणदासजी (डेहरा अलवर, दिल्ली) का जीवन परिचय, प्रमुख ग्रंथ, उपदेश, पीठ और राजस्थान–दिल्ली में पंथ का प्रसार जानें। निर्गुण–सगुण भक्ति मिश्रण और श्रीमद्भागवत की परंपरा पर विस्तृत जानकारी।
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1. परिचय
18वीं शताब्दी का संत परंपरा
निर्गुण–सगुण भक्ति का मिश्रण
दिल्ली, अलवर, जयपुर केंद्र
2. संत चरणदासजी का जन्म और परिवार
जन्म तिथि और स्थान
जन्म: भाद्रपद शुक्ला तृतीया, संवत् 1760
स्थान: डेहरा, अलवर
परिवार और मूल नाम
पिता: मुरलीधर
माता: कुंजो
कुल: दूसर-वैश्य
मूल नाम: रणजीत
3. दीक्षा और नाम परिवर्तन
गुरु: मुनि शुकदेव
दीक्षा प्राप्ति के बाद नाम “चरणदास”
4. चरणदासजी के ग्रंथ
ब्रह्म ज्ञान सागर
ब्रह्म चरित्र
भक्ति सागर
ज्ञान स्वरूदय
5. भविष्यवाणी और सामाजिक प्रभाव
नादिरशाह के आक्रमण की भविष्यवाणी
अनुयायियों में भविष्यवाणी से विश्वास बढ़ा
6. भक्ति और पंथ की विशेषताएँ
निर्गुण–सगुण भक्ति
निर्गुण निराकार ब्रह्म की आराधना
सखी भाव से सगुण भक्ति
मिश्रित भक्ति मार्ग
श्रीमद्भागवत की महत्ता
अनुयायी श्रीमद्भागवत को धर्म–ग्रंथ मानते
राधा–कृष्ण की उपासना
पीत वस्त्र परंपरा
जीवनभर पीत वस्त्र धारण
7. समाधि और मेला परंपरा
निधन: संवत् 1839 (1782 ई.), मार्गशीर्ष कृष्णा सप्तमी, बुधवार
स्थान: दिल्ली
समाधि स्थल: दिल्ली, बसंत पंचमी पर मेला
8. राजस्थान में प्रसार
प्रमुख शिष्य और योगदान
बहादुरपुर: महंत डंडोतीराम
जयपुर: आत्माराम, अखैराम, सरसमाधुरीशरण
मंदिर और छतरी
अलवर:
1. रियापाड़ी वाला मंदिर
2. टोली के कुएं वाला मंदिर
ग्राम: डेहरा, बहादुरपुर, शाहपुर, पृथ्वीपुरा, माचल, रालियावास
जन्मस्थान डेहरा: छतरी, टोपी, माला, गुदड़ी, चोला सुरक्षित
भाद्रपद शुक्ला तृतीया: वार्षिक मेला
9. वर्तमान स्थिति
दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, अवध, पूर्वी पंजाब में अनुयायी
विशेषकर अलवर और जयपुर राज्य में प्रमुख प्रसार
10. सारांश
चरणदासी पंथ और संत चरणदासजी (डेहरा अलवर, दिल्ली) 18वीं शताब्दी के एक महत्त्वपूर्ण संत आंदोलन का हिस्सा रहे। मूल नाम रणजीत था, लेकिन मुनि शुकदेव से दीक्षा के बाद वे “चरणदास” कहलाए। उन्होंने निर्गुण और सगुण भक्ति का अद्भुत समन्वय प्रस्तुत किया, जहाँ निर्गुण ब्रह्म की आराधना के साथ-साथ राधा-कृष्ण की भक्ति और श्रीमद्भागवत को केंद्रीय स्थान दिया गया। उनके ग्रंथ जैसे ब्रह्म ज्ञान सागर, भक्ति सागर और ज्ञान स्वरूदय अनुयायियों के लिए पथप्रदर्शक बने। नादिरशाह के आक्रमण की भविष्यवाणी ने उनकी संत छवि को और भी मज़बूत किया। चरणदासी पंथ के अनुयायियों ने सदैव पीत वस्त्र धारण करना, गुरु को देव-तुल्य सम्मान देना और श्रीमद्भागवत को सर्वोच्च धर्मग्रंथ मानना जीवन का अंग बनाया। उनका निधन 1782 ई. में दिल्ली में हुआ और वहीं उनकी समाधि पर आज भी बसंत पंचमी को मेला आयोजित होता है। राजस्थान, विशेषकर अलवर और जयपुर क्षेत्र में इस पंथ का व्यापक प्रसार हुआ, और आज भी अनुयायी उनकी शिक्षाओं को श्रद्धा से मानते हैं।
Quick Revision Facts Table
संत का नाम | संत चरणदासजी |
जन्म नाम | रणजीत |
जन्म वर्ष | संवत् 1760 (1703 ई.) |
जन्म तिथि | भाद्रपद शुक्ल तृतीया |
जन्म स्थान | डेहरा (अलवर) |
पिता का नाम | मुरलीधर |
माता का नाम | कुंजो |
गुरु | मुनि शुकदेव |
दीक्षा के बाद नाम | चरणदास |
प्रमुख ग्रंथ | ब्रह्म ज्ञान सागर, भक्ति सागर, ज्ञान स्वरोजय, ब्रह्म चरित्र |
विशेष | भविष्यवाणी नादिरशाह के आक्रमण की |
उपदेश पद्धति | निर्गुण-निराकार ब्रह्म की भक्ति + सगुण (Radha-Krishna devotion) |
वेशभूषा | पीत वस्त्र |
मुख्य धर्मग्रंथ | श्रीमद्भागवत |
मृत्यु | संवत् 1839 (1782 ई.), मार्गशीर्ष कृष्ण सप्तमी, बुधवार, दिल्ली |
समाधि | दिल्ली (जहाँ बसंत पंचमी को मेला लगता है) |
मुख्य पीठ | दिल्ली |
प्रभाव क्षेत्र | दिल्ली, अवध, उत्तर प्रदेश, पूर्वी पंजाब, राजस्थान |
राजस्थान में प्रसार | अलवर और जयपुर (बहादुरपुर, डेहरा, शाहपुर आदि) |
प्रमुख शिष्य | डंडोतीराम (बहादुरपुर), आत्माराम, अखैराम, सरसमाधुरीशरण |
जन्मस्थान पर स्मारक | डेहरा (अलवर) – छतरी, टोपी, माला, गुदड़ी, चोला सुरक्षित |
विशेषता | निर्गुण और सगुण भक्ति मार्ग का सम्मिश्रण |
FAQs
Q1. संत चरणदासजी का जन्म कब और कहाँ हुआ?
संत चरणदासजी का जन्म संवत् 1760 में भाद्रपद शुक्ला तृतीया को डेहरा, अलवर में हुआ था।
Q2. चरणदासजी का मूल नाम क्या था?
इनका मूल नाम रणजीत था।
Q3. चरणदास नाम कैसे पड़ा?
मुनि शुकदेव से दीक्षा लेने के बाद उन्हें चरणदास नाम मिला।
Q4. चरणदासजी के प्रमुख ग्रंथ कौन से हैं?
ब्रह्म ज्ञान सागर, भक्ति सागर, ब्रह्म चरित्र और ज्ञान स्वरूदय इनके प्रमुख ग्रंथ हैं।
Q5. संत चरणदासजी ने कौन सी भविष्यवाणी की थी?
उन्होंने नादिरशाह के आक्रमण की भविष्यवाणी की थी।
Q6. इस पंथ की मुख्य विशेषता क्या है?
यह निर्गुण और सगुण भक्ति का मिश्रण है, जिसमें श्रीमद्भागवत को धर्मग्रंथ माना जाता है।
Q7. संत चरणदासजी का निधन कब और कहाँ हुआ?
इनका निधन संवत् 1839 (1782 ई.) में दिल्ली में हुआ।
Q8. चरणदासी पंथ के अनुयायी किस देवता की उपासना करते हैं?
अनुयायी राधा-कृष्ण की उपासना करते हैं।
Q9. राजस्थान में इस पंथ का प्रसार किन क्षेत्रों में हुआ?
विशेषकर अलवर और जयपुर राज्य में इसका अधिक प्रसार हुआ।
Q10. संत चरणदासजी की समाधि पर मेला कब लगता है?
दिल्ली में बसंत पंचमी को मेला आयोजित होता है।
Q11. संत चरणदासजी के जन्मस्थान पर क्या विशेष संरचनाएँ हैं?
डेहरा में उनकी छतरी बनी है और टोपी, माला, गुदड़ी व चोला सुरक्षित हैं।