आवड़ माता जैसलमेर जिन्हें हिंगलाज माता का अवतार माना जाता है, जैसलमेर जिले की प्रसिद्ध देवी हैं। चारण समाज द्वारा पूजित यह देवी भाटी राजवंश की कुलदेवी भी हैं। तेमड़ा भाखर पर स्थित स्थान के कारण इन्हें ‘तेमड़ाताई’ कहा जाता है। आवड़ माता को राक्षसों का संहार करने, अथाह जल राशि को तीन चुल्लु में भरने और लोकमानस में सुगनचिड़ी स्वरूप से जोड़ा जाता है। चारण देवियों की परंपरा, नौ लाख तार की ऊनी साड़ी, और चरजा (सिगाऊ व घाड़ाऊ) इनके धार्मिक महत्व को और भी विशेष बनाते हैं। सात देवियों के सम्मिलित स्वरूप ‘ठाला’ की मान्यता भी लोकजीवन में गहरी है।
Page Contents
Toggleमुख्य बिंदु (Notes Form)
आवड़ माता जैसलमेर का परिचय
हिंगलाज माता का अवतार
चारण समाज की पूज्य देवी
सात बहनों में से एक देवी
पिता = मामड़ साड़वा शाखा चारण
स्थान: तेमड़ा भाखर, जैसलमेर
नाम: तेमड़ाताई
लोक आस्था केंद्र
पौराणिक महत्व
राक्षस संहारिनी
अथाह जल तीन चुल्लु में भरना
लोकमानस में सुगनचिड़ी स्वरूप
सात देवियों का सम्मिलित प्रतिमा = ठाला
कुलदेवी परंपरा
चारण देवियाँ → नौ लाख तार की ऊनी साड़ी
ठाला गले में पहनना → बुरी आत्माओं से बचाव
चरजा परंपरा
चारण देवियों का स्तुति पाठ
दो प्रकार:
सिगाऊ → शांति व स्तुति समय
घाड़ाऊ → विपत्ति व संकट समय
FAQs (Frequently Asked Questions)
Q1. आवड़ माता जैसलमेर किसका अवतार मानी जाती हैं?
A1. हिंगलाज माता का अवतार।
Q2. आवड़ माता का स्थान कहाँ है?
A2. जैसलमेर जिले के तेमड़ा भाखर पर।
Q3. आवड़ माता जैसलमेर किस राजवंश की कुलदेवी हैं?
A3. भाटी राजवंश की कुलदेवी।
Q4. चरजा क्या है?
A4. चारण देवियों की स्तुति परंपरा, दो रूप – सिगाऊ और घाड़ाऊ।
Q5. ठाला क्या है?
A5. सात देवियों की सम्मिलित प्रतिमा, जिसे भक्त गले में धारण करते हैं।
Table: आवड़ माता / हिंगलाज माता जानकारी
विषय | विवरण |
देवी का नाम | आवड़ माता |
अन्य नाम | हिंगलाज माता का अवतार, तेमड़ाताई |
स्थान | तेमड़ा भाखर, जैसलमेर |
कुलदेवी | भाटी राजवंश |
विशेष मान्यता | चारण समाज, सुगनचिड़ी स्वरूप |
शक्ति | राक्षस संहार, जल को तीन चुल्लु में भरना |
धार्मिक परंपरा | चरजा (सिगाऊ व घाड़ाऊ) |
प्रतीक | सात देवियों का ठाला |
सारांश (Summary):
आवड़ माता / हिंगलाज माता – जैसलमेर की भक्ति परंपरा, चारण समाज की आस्था और भाटी राजवंश की कुलदेवी। तेमड़ा भाखर पर स्थित यह स्थान ‘तेमड़ाताई’ नाम से विख्यात है। राक्षस संहार, जल को तीन चुल्लु में भरने की शक्ति, सुगनचिड़ी स्वरूप, और चरजा जैसी परंपराएँ इस देवी को लोकधरोहर का अमूल्य प्रतीक बनाती हैं।
