मोदरां माता जालौर | Modran Mata |आशापुरी देवी का इतिहास, कुलदेवी परंपरा और मंदिर महत्व

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मोदरां माता जालौर, जिन्हें आशापुरी देवी कहा जाता है, जालौर जिले की प्रसिद्ध कुलदेवी हैं। 1143 ई. में कच्छ भुज से पोकरण आई आशापुरी माता का मंदिर ‘महोदरी’ या बड़े उदर वाली माता के नाम से विख्यात है। सोनगरा चौहान शासकों की कुलदेवी होने के साथ-साथ बिस्सा जाति और अन्य कई समुदायों में भी इनकी विशेष मान्यता है। चारण समाज की बरबड़ी देवी भी आशापुरी स्वरूप मानी जाती हैं। जानें मोदरां माता का इतिहास, धार्मिक महत्व और आस्था का स्वरूप।

मुख्य बिंदु (Notes Form)

मोदरां माता जालौर \आशापुरी देवी का परिचय

आशा पूर्ण करने वाली देवी

कुलदेवी स्वरूप

महोदरी माता (बड़े उदर वाली माता)

लोकमान्यता + आस्था

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

समय: 1143 ई.

स्थान: कच्छ भुज से पोकरण आगमन

लूण भाणजी बिस्सा के साथ आगमन

मंदिर निर्माण पोकरण व जालौर

जालौर और मोदरां माता मंदिर

जालौर जिले में प्रसिद्ध

‘मोदरां माता’ नाम से लोकप्रिय

सोनगरा चौहान शासकों की कुलदेवी

धार्मिक महत्व

कुलदेवी परंपरा

चौहान वंश

बिस्सा जाति में विशेष मान्यता

चारण समाज → बरबड़ी देवी भी आशापुरी स्वरूप

अन्य कई जातियों की आराध्या देवी

धार्मिक आस्था

देवी दुर्गा का रूप

भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाली

आस्था केंद्र → राजस्थान व गुजरात दोनों क्षेत्रों में प्रभाव

FAQs (Frequently Asked Questions)

Q1. मोदरां माता किस नाम से जानी जाती हैं?

A1. आशापुरी देवी और महोदरी माता नाम से।

Q2. आशापुरी देवी कहाँ से आईं?

A2. कच्छ भुज से 1143 ई. में पोकरण।

Q3. सोनगरा चौहान वंश की कुलदेवी कौन थीं?

A3. आशापुरी माता।

Q4. किन जातियों में इनकी विशेष मान्यता है?

A4. चौहान, बिस्सा, चारण समाज और अन्य जातियाँ।

Q5. ‘महोदरी माता’ नाम क्यों पड़ा?

A5. इन्हें बड़े उदर वाली माता कहा जाता है।

Table: मोदरां माता / आशापुरी माता जानकारी

विषय विवरण
देवी का नाम आशापुरी देवी / मोदरां माता
अन्य नाम महोदरी माता
आगमन समय   1143 ई.
आगमन स्थान  कच्छ भुज से पोकरण
कुलदेवी सोनगरा चौहान, बिस्सा, अन्य जातियाँ
विशेष मान्यता  चारण समाज की बरबड़ी देवी भी आशापुरी स्वरूप
मंदिर स्थान जालौर, राजस्थान
महत्व मनोकामना  पूर्ण करने वाली देवी

सारांश (Summary):

मोदरां माता / आशापुरी माता – राजस्थान की लोकआस्था, कुलदेवी परंपरा और इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा। 1143 ई. में कच्छ भुज से आई आशापुरी देवी पोकरण व जालौर में पूजित हुईं। सोनगरा चौहान वंश की कुलदेवी होने के साथ-साथ बिस्सा जाति और अन्य समाजों में विशेष मान्यता। ‘महोदरी माता’ नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर आज भी आस्था और संस्कृति का प्रमुख केंद्र है।