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वीर कल्लाजी राठौड़ |Veer kallaji Rathore |राजस्थान के लोकदेवता

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वीर कल्लाजी राठौड़ राजस्थान के महान लोकदेवता और शेषनाग के अवतार माने जाते हैं। उनकी वीरता, बलिदान और लोकआस्था आज भी समाज को साहस और धर्म की राह दिखाती है। सामलिया मंदिर, रुण्डेला गाँव और चित्तौड़गढ़ की छतरी पर आज भी उनकी पूजा होती है।

परिचय

जन्म – 1544 ई., आश्विन शुक्ला अष्टमी, रविवार
जन्मस्थान – मेडता क्षेत्र (राजस्थान)
पिता – अचलसिंह (दूदाजी के छोटे पुत्र)
बुआ – संत मीरा बाई
गुरु – भैरवनाथ
कुलदेवी – नागदेवी माता
अवतार – शेषनाग
स्वरूप – चार हाथों वाले देवता
पूजा – नाग रूप में
 

अन्य नाम

कल्ला
कल्याण
कहर
कमधज
गुजरात – भाथी खत्री वीर
मालवा – जुझारू गुजरात
 

पूजा और आस्था

नाग रूप में पूजा
मंदिर – सामलिया (डूंगरपुर), काले पत्थर की मूर्ति
छतरी – चित्तौड़गढ़ दुर्ग, भैरवपोल
जागीर गाँव – रुण्डेला (रनेला)
मूर्ति पर चढ़ावा – केसर, अफीम
लोकमान्यता – रक्षक देवता, संकट हरने वाले
ग्रामीण समाज – रक्षक व प्रेरणास्रोत
 

वीरता और बलिदान

काल – अकबर शासन
घटना – चित्तौड़गढ़ का तीसरा साका
युद्ध – चाचा जयमल राठौड़ को कंधों पर बैठाकर लड़े
 

बलिदान –

सिर कटने के बाद भी कबंध युद्ध करता रहा
रुण्डेला तक पहुँचे
वहीं वीरगति
 

विशेषताएँ

योगाभ्यास में दक्ष
जड़ी-बूटियों का गहरा ज्ञान
लोकचिकित्सा में प्रसिद्ध
वीरता + आध्यात्मिकता का संगम
धर्म, साहस और न्याय का प्रतीक
 

मेले और उत्सव

रुण्डेला गाँव – प्रमुख मेला
सामलिया मंदिर – वार्षिक उत्सव
नागपंचमी पर विशेष पूजा
भाद्रपद और आश्विन माह – भक्ति आयोजन
लोकगीत, भजन, जागरण – वीरता का स्मरण
 

सांस्कृतिक भूमिका

राजस्थान की वीर परंपरा का प्रतीक
ग्रामीण समाज के लिए रक्षक देवता
संकट के समय कल्लाजी का नाम लिया जाता है
युवाओं के लिए आदर्श – साहस, बलिदान, धर्म रक्षा
 

भक्तों की मान्यताएँ और चमत्कार

रोग निवारण की मान्यता
नागदंश से रक्षा
संतान प्राप्ति के लिए पूजा
संकट मुक्ति व विजय की आस्था
भक्तजन आज भी मनोकामना पूर्ण होने का विश्वास रखते हैं
 

लोकगीत और भक्ति परंपरा

गाँव-गाँव में जागरण और भजन
राजस्थानी लोककवियों ने गाया
डफ, मंजीरे, ढोलक के साथ वीरता का वर्णन
गीतों में बलिदान और शौर्य का बखान
 

सारांश

राजस्थान के वीर लोकदेवता
मातृभूमि की रक्षा हेतु बलिदान
लोकगीतों और मेलों में अमर स्मरण
समाज के रक्षक और प्रेरणास्रोत