You are currently viewing वल्लभाचार्य |वल्लभ संप्रदाय| vallabhacharya | Vallabh samprday | राजस्थान के प्रमुख संत सप्रदाय

वल्लभाचार्य |वल्लभ संप्रदाय| vallabhacharya | Vallabh samprday | राजस्थान के प्रमुख संत सप्रदाय

वल्लभाचार्य और उनके वल्लभ संप्रदाय के सिद्धांत, शुद्धाद्वैत दर्शन व पुष्टिमार्ग से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियाँ सरल भाषा में यहाँ उपलब्ध हैं।

वल्लभाचार्यजी का जीवन परिचय

जन्म – 1978 ई वैशाख शुक्ला एकादशी गुरुवार

जन्मस्थल – चम्पारण (बिहार)

पिता – लक्ष्मण भट्ट

माता – इल्लमागारु

विवरण

सिध्दांत – शुद्धाद्वैतवाद (आत्मा-परमात्मा एक है)

सम्प्रदाय – वल्लभ / रुद्ध | पुष्टिमार्गी

ग्रंथ – अणुभाष्य, सिध्दांत रहस्य, भगवतटिका सुबोधिनी, ब्रह्मसूत्र, कृष्ण की बाल रूप की पूजा होती है।

ये संप्रदाय प्रारम्भ किया – वल्लभाचार्यजी ने 

इसे पूर्ण किया – विठलनाथजी ने  (अष्टछाप कवि मंडली का गठन)

कृष्णदेवराय द्वारा धर्मसभा में इन्हें महाप्रज्ञ की उपाधि से अलंकृत किया गया था।

अष्टछाप कवि मंडली

वल्लभाचार्च के 4 शिष्य – सूरहास, परमानन्दहास, कृष्णदास कुंभनदास

वि‌ठ्ठलनाथजी के 4 शिष्य – नेहहास, चतुर्भुवदास, गोविंदडाल छीतस्वामी

मंदिर

औरंगजेब के समय (1669ई.) मे मंदिर तोडा गया, तब गोस्वामी दामोदर गोविंदजी ने वृंदावन से दो मूर्तियां लाकर राज मे कदमखेडी (चौपासनी,जोधपुर) नामक जगह पर ठहरे ।

राजसिंह ने 1672ई. में सिहांड और कांकरोली मे 2 मंदिर बनवाए।

ⅰ.) श्रीनाथ जी मंदिर – (प्रमुख पीठ)

सिहाड गाव (नाथद्वारा, राजसमंद), बनास नदी (NH-8)

पिछवाईया प्रसिद्ध (भगवान श्रीकृष्ण की कपडे पर बाल लीलाए)

मंदिरों को हवेली व संगीत को हवेली संगीत कहते हैं।

भगवान दर्शन-झांकी, ईश्वर कृपा – पुष्टि

अन्नकट महोत्सव प्रसिद्ध

(ⅱ) द्वारिकाधीश जी मंदिर –

राजसमंद झील किनारे कांकरोली (राजसमंद) में बनाया गया।

वल्लभाचार्य के पुत्र विठ्‌ठलनाथ के 7 पुत्रों ने इस सम्प्रदाय के 7 मंदिर बनवाए।

मंदिर स्थान
मथुराधीश मंदिर कोटा
गोकुलचंदजी मंदिर कामां (भरतपुर)
मदनमोहनजी मंदिर भरतपुर
गोकुलनाथजी मंदिर उत्तरप्रदेश
बालकृष्णजीमंदिर सूरत, गुजरात
विठ्ठलनाथजी मंदिर नाथद्वारा
द्वारकाधीशजी मंदिर कांकरोली, राजसमन्द
वल्लभाचार्य वल्लभ संप्रदाय राजस्थान संत संप्रदाय की प्रतिमा

सार

आचार्य वल्लभाचार्य सिर्फ एक दार्शनिक नहीं थे, बल्कि ऐसे संत थे जिन्होंने भक्ति को जीने का नया तरीका दिखाया। उन्होंने वल्लभ संप्रदाय और पुष्टिमार्ग की नींव रखी, जहाँ भगवान कृष्ण को बाल स्वरूप में प्रेम और सेवा के साथ पूजा जाता है। उनका संदेश था – ईश्वर तक पहुँचने का रास्ता कठिन साधनाओं से नहीं, बल्कि उसकी कृपा और सच्चे प्रेम से खुलता है। यही कारण है कि वल्लभ संप्रदाय आज भी लोगों के दिलों में जीवित है और लाखों भक्तों को भक्ति व आनंद से जोड़ता है।