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“पाबूजी राठौड़: राजस्थान के महान लोकदेवता। पाबूजी का जन्म, माता-पिता, विवाह, मंदिर, मेलों और वीरता की कथा संक्षेप में।”
जन्म- 1239 ई. में फलोदी के निकट कोलुमंड
पिता- धान्धलजी राठौर
माता- कमलादे
पत्नी- सुप्यारदे (फुलमदे ) अमरकोट के राजा सूरजमल सोढा की पुत्री
उपनाम- गौ रक्षक देवता, प्लेग रक्षक देवता एवं ऊँटो के देवता, लक्ष्मण के अवतार
घोड़ी- केसर कालमी (देवल चारणी से मांग कर लायी थी)
मृत्यू- 1276 ई. में देवल चारणी की गांये छुड़ाने के लिए देचू गावं में बहनोई जायल के जिन्दराव खींची से युद्ध करते हुए
मंदिर- कोलुमंड में
मेला- चैत्र अमावस्या
सहयोगी- चांदा नायक, डेमा नायक, हरमल रेबारी, सावंत और सलजी
प्रतीक चिह्न- झुकी पाग और भाला
ग्रन्थ | रचयिता |
पाबू प्रकाश | आशिया मोडजी |
पाबुजी रा छंद | बीठू मेहा |
पाबूजी का दोहा | लघराज |
पाबू सोरठा | रामनाथ कविया |
पाबूजी री वात | लक्ष्मी कुमारी चुन्डावत |
मारवाड़ में सर्वप्रथम ऊंट लाने के श्रेय पाबुजी को है |
राईका(रेबारी) और थोरी जाति के लोग इन्हे अपना आराध्य देव मानते है|
इनके भक्त थाली नृत्य करते है|
पाबुजी के गीत ( पाबुजी के पवाडे ) माठ वाद्य के साथ नायक व रेबारी जाति के द्वारा गाए जाते है
पाबुजी की फड नायक जाति के भोपो द्वारा रावणहत्था के साथ बांची जाती है|