संत राना बाई (Sant Rana Bai) का जीवन, जन्म, भक्ति, चमत्कार और समाधि स्थल। Rajasthan की दूसरी मीरां और महान कृष्ण भक्त महिला संत का इतिहास।
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Toggleपरिचय (Introduction)
राजस्थान की संत परंपरा में संत राना बाई का नाम श्रद्धा और भक्ति से लिया जाता है। उन्हें “राजस्थान की दूसरी मीरां” कहा जाता है। राना बाई ने अपना पूरा जीवन कृष्ण भक्ति, साधना और चमत्कारों से भरा। उनकी समाधि आज भी हरनांवा गांव (मकराना, मारवाड़) में आस्था का केंद्र है।
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जन्म और परिवार (Birth & Family)
जन्म : वैशाख शुक्ल तृतीया, 1504 ई.
जन्म स्थान : हरनांवा, मकराना (राजस्थान)
पिता : रामगोपाल जाट
माता : गंगा बाई
दादा : जालम जाट
समाज : जाट (धूण गोत्र)
शिक्षा और भक्ति (Education & Devotion)
शिक्षा-दीक्षा : खोजीजी महाराज से प्राप्त
गुरु : संत चतुरदास (पालड़ी)
साधना मार्ग : कृष्ण भक्ति
जीवन में भजन-कीर्तन और ध्यान
साधना और तपस्या (Spiritual Journey)
राना बाई ने निश्चय किया कि वे ऐसे स्थान पर भक्ति करेंगी जहाँ कोई सांसारिक व्यक्ति न हो। वे नौ-दस महीने तक एक भँवरे (गुफा) में रही। इस दौरान भगवान ने स्वयं उनके लिए भोजन और ठंडे पानी का प्रबंध किया।
उनका नियम था कि केवल “चुटकी आटा भिक्षा” लेकर गुज़ारा करें। बाद में उन्होंने वृंदावन यात्रा की और वहाँ से भगवान गोपीनाथ एवं राधा की प्रतिमा हरनांवा लाकर नित्य पूजा-पाठ शुरू किया।
समाधि और मेला (Samadhi & Fair)
जीवित समाधि : 1570 ई.
तिथि : फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी
स्थान : हरनांवा गांव
समाधि निर्माण : भाई भुवान जी द्वारा
वार्षिक मेला : भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी → विशाल आयोजन
चमत्कार और कथाएँ (Miracles & Stories)
ठाकुर राजसिंह और युद्ध की कथा
1730 ई. में जोधपुर महाराजा अभयसिंह ने अहमदाबाद पर आक्रमण किया। बोरावड़ के ठाकुर राजसिंह भी युद्ध में शामिल हुए। युद्ध से पहले उन्होंने मन ही मन राना बाई से वचन लिया कि यदि विजय मिली तो हरनांवा जाकर समाधि पर दर्शन करेंगे।
विजय मिली, लेकिन वे सीधे अपने गढ़ लौट गए। जैसे ही प्रवेश करना चाहा, उनका हाथी गढ़ के दरवाजे पर अटक गया। ठाकुर को स्मरण हुआ कि उन्होंने राना बाई से वचन तोड़ा है। जब वे हरनांवा जाकर समाधि पर दर्शन कर क्षमा-याचना करके लौटे, तभी हाथी ने गढ़ में प्रवेश किया।
महाराजा उम्मेदसिंह की घटना
संवत 1979 (1922 ई.) में जोधपुर महाराजा उम्मेदसिंह जयपुर महाराजा माधोसिंह के निधन पर मातमी करने जयपुर जा रहे थे। रास्ते में हरनांवा में डेरा डाला। उन्होंने राना बाई की समाधि के पास मदिरा और मांस का सेवन शुरू किया।
पुजारी ने मना किया लेकिन किसी ने बात नहीं मानी। तभी अचानक भयंकर तूफान आया, चारों ओर अंधेरा छा गया और खाना-तंबू सब गायब हो गए। भयभीत महाराजा ने राना बाई की समाधि पर दण्डवत प्रणाम कर क्षमा माँगी। तभी संकट दूर हुआ। उसके बाद किसी ने समाधि स्थल पर मांस-मदिरा का सेवन करने का साहस नहीं किया।
अग्नि प्रज्ज्वलन चमत्कार
कहते हैं कि समाधि के पास जब नारियल की जटाएँ एकत्र होती हैं, तो साल में एक-दो बार अपने आप अग्नि प्रज्ज्वलित हो जाती है और सब राख में बदल जाता है। इसे राना बाई की दिव्य शक्ति का प्रमाण माना जाता है।
-मान्यता और श्रद्धा (Faith & Importance)
जाट समाज में गहरी मान्यता
“राजस्थान की दूसरी मीरां” का सम्मान
हरनांवा की समाधि आज भी आस्था का केंद्र
भक्ति और साधना की प्रेरणा स्वरूप
सारांश (Conclusion)
संत राना बाई का जीवन भक्ति, साधना और चमत्कारों का संगम है। वे राजस्थान की दूसरी मीरां कहलाती हैं। हरनांवा की समाधि और वार्षिक मेला आज भी उनकी दिव्य उपस्थिति का प्रतीक है। उनकी जीवन गाथा भक्ति और समर्पण का आदर्श प्रस्तुत करती है।
FAQs (Frequently Asked Questions)
Q1. संत राना बाई का जन्म कब हुआ?
Ans. 1504 ई., हरनांवा (मकराना, मारवाड़)।
Q2. संत राना बाई को राजस्थान की दूसरी मीरां क्यों कहा जाता है?
Ans. उनकी कृष्ण भक्ति, साधना और दिव्य चमत्कार मीरा बाई के समान थे।
Q3. राना बाई की समाधि कहाँ है?
Ans. हरनांवा गांव, राजस्थान।
Q4. समाधि पर मेला कब लगता है?
Ans. प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी को।
Q5. राना बाई किस समाज से थीं?
Ans. जाट समाज (धूण गोत्र)।
संत राना बाई : Rajasthan ki Doosri Meera (Quick Reference Table)
विषय (Topic) | विवरण (Details) |
पूरा नाम | संत राना बाई (Sant Rana Bai) |
उपाधि | राजस्थान की दूसरी मीरां (Doosri Meera of Rajasthan) |
जन्म तिथि | वैशाख शुक्ल तृतीया, 1504 ई. |
जन्म स्थान | हरनांवा गांव, मकराना (मारवाड़, राजस्थान) |
पिता का नाम | रामगोपाल जाट |
माता का नाम | गंगा बाई |
दादा का नाम | जालम जाट |
समाज/गोत्र | जाट समाज, धूण गोत्र |
गुरु | संत चतुरदास (पालड़ी) |
शिक्षा-दीक्षा | खोजीजी महाराज से |
भक्ति साधना | कृष्ण भक्ति, भजन-कीर्तन, गुफा में तपस्या |
तपस्या | 9–10 महीने तक भँवरे (गुफा) में साधना |
नियम | “चुटकी आटा भिक्षा” |
यात्राएँ | वृंदावन, मथुरा आदि |
प्रतिमा स्थापना | वृंदावन से गोपीनाथ-राधा की प्रतिमा हरनांवा में स्थापित |
समाधि | तिथि फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी, 1570 ई. |
स्थान | हरनांवा गांव (राजस्थान) |
समाधि निर्माण | भाई भुवान जी द्वारा कच्ची समाधि |
वार्षिक मेला | भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी को विशाल मेला |
प्रमुख चमत्कार | ठाकुर राजसिंह का हाथी गढ़ में न जाना, महाराजा उम्मेदसिंह का तूफान प्रकरण, समाधि पर नारियल जटाओं में स्वतः अग्नि प्रज्ज्वलन |
मान्यता | जाट समाज और राजस्थान में गहरी श्रद्धा |
विशेषता | राजस्थान की संत महिलाओं में सर्वोच्च स्थान, भक्ति और समर्पण का प्रतीक |
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