राजस्थान की वीर भूमि में अनेक लोकदेवता हुए, जिन्होंने अपने त्याग, धर्म और न्यायप्रियता से समाज को मार्गदर्शन दिया। उन्हीं महान लोकदेवताओं में से एक हैं मेहाजी मांगलिया, जो पाँच पीरों में शामिल माने जाते हैं। उनकी लोकगाथाएँ, लोककथाएँ और मेले आज भी समाज को धर्म और करुणा की राह दिखाते हैं।
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नाम – मेहाजी मांगलिया
जन्म – तापू गाँव, जोधपुर
तिथि – भाद्रपद कृष्ण अष्टमी (मेहाजी की अष्टमी)
कुल – पंवार क्षत्रिय
लालन-पालन – ननिहाल, मागालिया गोत्र
उपनाम – मांगलिया मेहाजी
समकालीन – मारवाड़ राव चुण्डा
विशेषताएँ
पाँच पीरो में शामिल
धर्म और न्यायप्रियता के प्रतीक
लोककल्याण हेतु समर्पित जीवन
साहस और त्याग का आदर्श
मंदिर और पूजा
प्रमुख मंदिर – बापणी
पुजारी – वंश में वृद्धि नहीं करते (संयम परंपरा)
प्रतिदिन पूजा और भक्ति अनुष्ठान
लोकमान्यता – संकटमोचक और रक्षक देवता
घोड़ा और प्रतीक
घोड़ा – किरड काबरा
घोड़े पर आरूढ़ स्वरूप की पूजा
शक्ति, साहस और रक्षा का प्रतीक
मेला और उत्सव
घटना – जैसलमेर के राव राणगदेव भाटी से संघर्ष
कारण – धर्मबहिन पाना गुजरी की गायों की रक्षा
परिणाम – युद्ध में वीरगति प्राप्त
लोकविश्वास – प्राण न्यौछावर कर धर्म व रक्षा की मिसाल
लोकआस्था और मान्यताएँ
गाँव-गाँव में लोकगीत और कथाएँ
समाज में रक्षक और प्रेरणास्रोत
आस्था – धर्म, करुणा और सत्य की राह पर चलने की प्रेरणा
संकट में मेहाजी का स्मरण
सारांश
मेहाजी मांगलिया राजस्थान की लोकसंस्कृति में पूजनीय देवता हैं। उनका जीवन धर्म, साहस, करुणा और न्यायप्रियता का प्रतीक है। उन्होंने प्राणों की आहुति देकर धर्म और गो-रक्षा की अमर गाथा लिखी। आज भी गाँव-गाँव में उनकी गाथाएँ गाई जाती हैं और भक्त उन्हें रक्षक व मार्गदर्शक मानकर श्रद्धा से पूजते हैं।
नाम | मेहाजी मांगलिया |
जन्मस्थान | तापू गाँव, जोधपुर |
तिथि | भाद्रपद कृष्ण अष्टमी (मेहाजी की अष्टमी) |
कुल | पंवार क्षत्रिय |
लालन-पालन | ननिहाल, मागालिया गोत्र |
गुरुता | पाँच पीरों में शामिल |
विशेषता | शकुनशास्त्र के ज्ञाता, न्यायप्रिय, धर्मनिष्ठ |
मंदिर | बापणी |
घोड़ा | किरड काबरा |
मेला | भाद्रपद कृष्ण अष्टमी |
बलिदान | राव राणगदेव भाटी से युद्ध, गो-रक्षा हेतु वीरगति |

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