“श्री मल्लीनाथ जी राजस्थान के पूजनीय लोकदेवता और वीर योद्धा थे। 1358 ई. में जन्मे मल्लीनाथ जी ने धर्म, न्याय और प्रजा कल्याण के लिए जीवन समर्पित किया। बाड़मेर तिलवाड़ा मंदिर और चैत्र मेला आज भी उनकी आस्था का केंद्र हैं।”
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पराक्रमी योद्धा और न्यायप्रिय शासक
धर्म, साहस और प्रजा कल्याण के प्रतीक
लोककथाओं और गीतों में अमर स्मरण
जन्म और परिवार
जन्म – 1358 ईस्वी
पिता – राव तीडा जी (सलखा जी)
माता – जीणादे
लालन-पालन – चाचा कान्हडदे, महेवा
गुरु – उगमसी
बचपन से वीरता और धर्मनिष्ठा के लिए प्रसिद्ध
जीवन यात्रा
1374 ई. – चाचा कान्हडदे की मृत्यु के बाद महेवा के स्वामी बने
1378 ई. – मालवा के निजामुद्दीन को परास्त किया
निर्गुण, निराकार ईश्वर की उपासना
भविष्यदृष्टा और चमत्कारी पुरुष माने जाते थे
धार्मिक योगदान
“कुंडा पथ” की शुरुआत
धर्म और भक्ति का प्रसार
लोकचेतना और अध्यात्म का मार्गदर्शन
संत परंपरा और लोक आस्था से गहरा जुड़ाव
मंदिर और आस्था केंद्र
प्रमुख मंदिर – तिलवाड़ा (बाड़मेर), लूणी नदी किनारे
रानी रूपादे मंदिर – मालामाल गाँव
छत्री और स्मारक – श्रद्धा के प्रतीक
पूजा – संकटमोचक देवता के रूप में
मेला और परंपरा
तिलवाड़ा मेला – चैत्र कृष्णा एकादशी से चैत्र शुक्ला एकादशी तक
लाखों श्रद्धालु हर वर्ष पहुँचते हैं
भक्ति गीत, लोकनृत्य, सांस्कृतिक आयोजन
व्यापारिक और सामाजिक मेलजोल का बड़ा केंद्र
सांस्कृतिक योगदान
मालानी क्षेत्र (गुड़ा मालानी) – नामकरण मल्लीनाथ जी से
लोकगीतों, लोककथाओं और भजनों में वर्णन
ग्रामीण समाज में आज भी रक्षक देवता
साहस, त्याग और धर्म रक्षा का आदर्श
सारांश
श्री मल्लीनाथ जी – वीर योद्धा और लोकदेवता
प्रजा कल्याण और धर्म रक्षा के प्रतीक
लोकगीतों और मेलों में जीवित स्मरण
आज भी राजस्थान के लोगों की आस्था का केंद्र
जन्म | 1358 ई. |
पिता | राव तीडा जी (सलखा जी) |
माता | जीणादे |
गुरु | उगमसी |
पालन-पोषण | चाचा कान्हडदे (महेवा) |
शासन | 1374 ई. – महेवा के स्वामी |
युद्ध | 1378 ई. – मालवा निजामुद्दीन पर विजय |
धार्मिक योगदान | कुंडा पथ की शुरुआत |
प्रमुख मंदिर | तिलवाड़ा (बाड़मेर), लूणी नदी किनारे |
मेला | चैत्र कृष्णा एकादशी – चैत्र शुक्ला एकादशी |
रानी | रूपादे (मंदिर – मालामाल गाँव) |
विशेष स्थान | मालानी क्षेत्र (गुड़ा मालानी) – नामकरण उन्हीं से |
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